जहाँ पर भर जहाँमहारानी कुन्ता की टकसाल थी वहां उन्होंने पारिजात या कल्प वृक्ष का रोपण किया था।

 हमारे पूर्वाग्रहों के कारण इतिहास की बहुत सी बातें परदे के पीछे छिपी रह जाती हैं। जब आपसे कोई लखनऊ के नाम करण के बारे में जानना चाहेगा, तब आप कहेंगे कि दषरथ पुत्र लखन के नाम पर लखनपुरी बसाई गई, और उसी का बिगड़ा हुआ रूप लखनऊ है। बहराइच के नामकरण की बात चलेगी तब आप कहेंगे कि ब्रह्मा जी ने वहां पर तप किया था, ब्रह्माइच का बिगड़ा हुआ रूप बहराइच है। जबकि सत्य यह है कि लखन भर के नाम पर लखनपुरी बसाई गई, और उसका बिगड़ा रूप लखनऊ है।वीर लड़ाकू भर जाति के नाम पर भर-राइच,भराइच,बहराइच नगर बसा है।लेकिन क्या करें हमारी पौराणिक सोच खींचतान कर पौराणिक पात्रों से साम्यता स्थापित कर ही देती है।

       ऐसा ही कुछ बाराबंकी जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर स्थित किन्तूरनगर ;किन्तौर,कुन्तौरद्ध, कुन्तीष्वर मन्दिर,एवं पारिजात वृक्ष के विषय में पूर्वाग्रहों का सहारा लिया गया है। किन्तूर बाराबंकी जिले की सिसौली गौसपुर तहसील में स्थित है। कुछ समाचार पत्रों में किन्तूर मन्दिर का रहस्य बताते हुए छापा गया है कि षिवलिंग को सबसे पहले कुन्ती ही पूजती है। समाचारपत्रों में कहा गया है कि पाण्डव जननी कुन्ती अज्ञातवास के समय यहां ठहरी थी। भगवान षंकर को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने इस मन्दिर की स्थापना कराई थी।,इसी लिए इस मन्दिर का नाम कुन्तीष्वर मन्दिर पड़ा, तथा नगर का नाम किन्तूर पड़ा। एक-दो किलोमीटर दूर स्थित कल्पवृक्ष के विषय में भी यही कल्पना की गई है कि इस पारिजात का रोपण अर्जुन ने अपनी माता कुन्ती के नाम पर किया था।

      उपरोक्त बातें बिलकुल निराधार हैं। सत्य तो यह है कि किन्तूर-किन्तौर,-कुन्तौरनगर भर षासक महाराजा बारा ने अपनी महारानी कुन्ता जिनका नाम कहीं कहीं किन्तमा या कुन्तमा भी लिखा है के नाम पर बसाया था। बाराबंकी का नामकरण भी भर षासक महाराजा बारा के नाम पर किया गया है। भर- राजभर षासक महाराजा बारा ने 872 ई. से 912 ई. तक बाराबंकी साम्राज्य पर षासन किया। सन् 912 ई. में राष्टृकूट वंष के राजा कृष्ण द्वितीय ने भर-राजभर षासक महाराजा बारा को पराजित किया।       

      भर षासक महाराजा बारा की महारानी राजभर कुल गौरव कुन्ता ;किन्तमा,कुन्तमाद्ध ने 912 ई. से 915 ई. तीन वर्ष तक बाराबंकी साम्राज्य को सम्हाले रखा। भर महारानी कुन्ता ने ही षिव को प्रसन्न करने के लिए षिव मन्दिर बनवाया था। आज भी भर महारानी कुन्ता सर्व प्रथम भगवान षिव की पूजा करने आती हैं। जब वे पूजा करती हैं तब उपस्थित अन्य प्राणी तन्द्रा निद्रा ग्रस्त हो जाते हैं। सन् 915 ई. में प्रतिहार वंष के महेन्द्रपाल ने कुन्ता साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। कुन्तौर में भयंकर युद्ध हुआ । राजभर महारानी कुन्ता पराजित हो गईं और उनका कत्ल कर दिया गया।  

     जहाँ पर भर महारानी कुन्ता की टकसाल थी वहां उन्होंने पारिजात या कल्प वृक्ष का रोपण किया था। इस अद्भुत बृक्ष की गोलाई पचास फीट तथा ऊंचाई पैंतालीस फीट है। वनस्पति षास्त्रियों ने इस वृक्ष की आयु एक हजार वर्ष आंकी है। विज्ञ पुरुष ही बताएं कि वह वृक्ष जिसकी आयु एक हजार वर्ष आंकी गई है, कुन्ती पुत्र अर्जुन द्वारा रोपित कैसे हो सकता है ? भारतीय डाकतार विभाग ने 4 मार्च सन् 1997 ई. को इस पारिजात वृक्ष पर पांच एवं छः रुपए के दो डाक टिकिट जारी किए थे, जिन्हें उत्तरप्रदेष के महामहिम राज्यपाल श्री रोमेष भण्डारी ने जारी किए थे। यह खबर भी छापी गई थी कि इस वृक्ष को माता कुन्ती के नाम पर अर्जुन ने लगाया था।यह धारणा पूर्णतः निराधार है।

    बाराबंकी नरेष बारा, बाराबंकी, महारानी कुन्ता, और कुन्तौरनगर आदि के विषय में साक्ष्य के लिए गजेटियर आफ दी प्रोविन्सेस आफ अवध वाल्यूम 2 ;1878द्ध पृष्ठ 112, आन दी ओरिजिनल इन हेविटेन्स आफ भारतवर्ष आर इण्डिया पृष्ठ 39-40-गुस्तव ओपर्ट, अवध गजेटियर पृष्ठ 255 आदि का अध्ययन किया जा सकता है।

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